शेर शिवा का छावा था (
देश धरम पर मिटनेवाला शेर शिवा का छावा था । महापराक्रमी परमप्रतापी, एक ही शंभू राजा था ।।
तेज:पुंज तेजस्वी आँखे, निकल गयी पर झुका नही । दृष्टी गयी पर राष्ट्रोन्नती का, दिव्य स्वप्न तो मिटा नही ।।
दोनो पैर कटे शंभूके, ध्येयमार्ग से हटा नही । हाथ कटे तो क्या हुआ, सत्कर्म कभी भी छुटा नही ।।
जिव्हा काटी खून बहाया, धरम का सौदा किया नही । शिवाजी का ही बेटा था वह, गलत राह पर चला नही ।।
रामकृष्ण, शालिवाहन के, पथसे विचलित हुआ नही ।। गर्व से हिंदू कहने मे, कभी किसी से
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